मनुष्य को अपनी जिंदगी सँवारने, अपनी अलग पहचान बनाने के लिए खुद को अनुशासित करना अत्यंत आवश्यक है।
हम प्रकृति पर नजर डालें तो रात के बाद दिन,
दिन के बाद रात, सूर्य का पूरब से उदय होकर पश्चिम में अस्त होना,
वर्ष भर में एक के बाद एक मौसम बदलने का निश्चित क्रम अनुशासन की ही मिसाल है।
यहाँ तक कि पक्षी भी सवेरे सूर्योदय के समय तक जागकर चहचहाने लगते हैं,
वहीं कुछ इनसान दिन के बारह बजे तक भी बिस्तर नहीं छोड़ते।
एक शायर अशोक मजाज बद्र ने सच ही कहा है-
'मंजिलें ख्वाब बन के रह जाएँ, इतना बिस्तर से प्यार मत करना ।